बिन चाहत की खोज ।
इस बात को लिए सोच,
हूँ बड़ा ही संकोच।
वोह कौन है जो बिन मुस्कुराये
बिन सोच के हिचकिचाये
अनजान बने और चाहे
कि मुस्कान लौट आये ?
जान पहचान ना होके ,
हँसी एक पल का देके,
चल पडे वोह धोल्के,
लाफ्टर चैलेन्ज में आके ।
एक पल की मुस्कान को तरस ,
नशे में लेते हैं चरस ।
मिटते हैं यह बरस बरस ,
नशे लेके अपने नस नस ।
मुस्कुराके चलें तो क्या ?
खुश करेंगे या
बिन मुस्कराहट के गम
दिल रोये और आंखें हैं नम ।
चाहूँ सबको एक पल हसाने को ।
मुस्कान एक होंठों पे लाने को ।
दीवाना समझ बैठे हैं वोह भी ।
समझ नही पाते हैं कभी भी ।
दिल हल्का हो जाय यह कर ।
मज़ाक सूझे और दीवाना बने उस पल ।
खुद ही तमाशा बनना है।
लेकिन कोई यह बात नही समझता ।
है एक कोना मेरा भी
जहाँ रोना होता है मुझे भी ।
समझ सके कोई कभी ,
इसीकी इंतज़ार में हूँ अभी।
1 comments:
अगर यह आपकी पहली हिन्दी पोस्ट है तो आपको मबारकबाद!
हिन्दी में नियमित लेखन की शुभकामनाएँ!
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